प्राचीन भारतीय इतिहास, प्रागैतिहासिक काल से लेकर लगभग 7वीं शताब्दी ईस्वी तक, मानव सभ्यता के विकास की एक आकर्षक यात्रा है। यह संस्कृतियों के उत्थान और पतन, साम्राज्यों के निर्माण, सामाजिक संरचनाओं के विकास और बौद्धिक तथा आध्यात्मिक क्रांतियों की कहानी है।
प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric Period)
यह वह काल है जब लेखन कला का विकास नहीं हुआ था। इसे पत्थर के औजारों के आधार पर तीन भागों में बांटा गया है।
पुरापाषाण काल (Paleolithic Age):
जीवनशैली: मानव शिकारी और खाद्य-संग्राहक था। वे गुफाओं और शैलाश्रयों में रहते थे।
औजार: बड़े और अनगढ़ पत्थर के औजार (जैसे हाथ की कुल्हाड़ी, खुरचनी)।
कला: भीमबेटका (मध्य प्रदेश) की गुफाओं में इस काल के शैल चित्र मिलते हैं, जिनमें शिकार और सामुदायिक जीवन के दृश्य हैं।
मध्यपाषाण काल (Mesolithic Age):
जीवनशैली: शिकार और संग्रहण जारी रहा, लेकिन पशुपालन की शुरुआत भी हुई।
औजार: छोटे और नुकीले पत्थर के औजार, जिन्हें 'माइक्रोलिथ' कहा जाता है।
नवपाषाण काल (Neolithic Age):
जीवनशैली: यह एक क्रांतिकारी काल था जिसमें कृषि की शुरुआत हुई। मानव ने स्थायी बस्तियाँ बसाईं और गाँव विकसित हुए।
प्रमुख स्थल: मेहरगढ़ (अब पाकिस्तान में) में गेहूँ और जौ की खेती के सबसे पुराने साक्ष्य मिले हैं। बुर्जहोम (कश्मीर) में गड्ढों वाले घर (गर्त-निवास) पाए गए हैं।
हड़प्पा सभ्यता (लगभग 2500 - 1900 ई.पू.) 🏙️
यह भारत की पहली शहरी, कांस्य-युगीन सभ्यता थी जो सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के मैदानों में विकसित हुई।
राजनीतिक-सामाजिक संरचना:
एक केंद्रीय प्राधिकरण की संभावना है, जो शायद व्यापारी वर्ग के हाथ में थी। समाज संभवतः समतावादी था।
आर्थिक जीवन:
कृषि: गेहूँ, जौ, कपास (दुनिया में सबसे पहले) और विभिन्न अन्य फसलें उगाई जाती थीं।
व्यापार: मेसोपोटामिया, ओमान और बहरीन के साथ एक उन्नत समुद्री व्यापार था। लोथल (गुजरात) एक महत्वपूर्ण बंदरगाह और गोदी-बाड़ा (dockyard) था।
नगर नियोजन और वास्तुकला:
शहर ग्रिड-पैटर्न पर बने थे, जिसमें सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
उन्नत जल निकासी प्रणाली इसकी सबसे बड़ी विशेषता थी। हर घर में स्नानागार और कुएँ थे।
पकी ईंटों का बड़े पैमाने पर उपयोग होता था।
प्रमुख संरचनाओं में मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार और हड़प्पा के विशाल अन्नागार शामिल हैं।
कला और धर्म:
मुहरें: स्टेटाइट से बनी मुहरें मिली हैं, जिन पर जानवरों (जैसे एक-श्रृंगी पशु, बैल) और एक चित्रात्मक लिपि (जो अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है) के चित्र हैं।
मूर्तियाँ: 'नर्तकी की कांस्य प्रतिमा' और 'पुजारी राजा' की पत्थर की मूर्ति कला के बेहतरीन उदाहरण हैं।
धर्म: मातृ देवी (उर्वरता की देवी) और एक पुरुष देवता 'पशुपति' (मुहर पर चित्रित, जो शिव का आदिरूप माने जाते हैं) की पूजा के साक्ष्य मिलते हैं। वे पेड़ और पशुओं की भी पूजा करते थे।
पतन: लगभग 1900 ई.पू. के आसपास इस सभ्यता का पतन हो गया। इसके संभावित कारण जलवायु परिवर्तन, नदियों का सूखना या मार्ग बदलना और व्यापार में गिरावट माने जाते हैं।
वैदिक काल (लगभग 1500 - 600 ई.पू.)
यह काल आर्यों के आगमन और वेदों की रचना से जुड़ा है। इसे दो चरणों में बांटा गया है।
प्रारंभिक वैदिक या ऋग्वैदिक काल (1500 - 1000 ई.पू.):
राजनीति: समाज कबीलाई था। कबीले को 'जन' और उसके मुखिया को 'राजन' कहा जाता था। राजा वंशानुगत नहीं था और उसे सभा और समिति जैसी कबीलाई परिषदों की सलाह लेनी पड़ती थी।
समाज: समाज पितृसत्तात्मक था लेकिन महिलाओं की स्थिति सम्मानजनक थी। वे यज्ञों और सभाओं में भाग ले सकती थीं। वर्ण व्यवस्था कर्म आधारित और लचीली थी।
अर्थव्यवस्था: मुख्यतः पशुचारी थी। गाय संपत्ति का मुख्य स्रोत और विनिमय का माध्यम थी। कृषि का महत्व कम था।
धर्म: प्रकृति की शक्तियों की पूजा की जाती थी, जैसे इंद्र (युद्ध और वर्षा के देवता), अग्नि (आग के देवता), और वरुण (जल के देवता)। यज्ञ और प्रार्थना पूजा के मुख्य तरीके थे।
उत्तर वैदिक काल (1000 - 600 ई.पू.):
राजनीति: 'जन' ने बड़े क्षेत्रीय राज्यों का रूप ले लिया जिन्हें 'जनपद' कहा गया। राजा की शक्ति बढ़ी और पद वंशानुगत हो गया। सभा और समिति का महत्व कम हो गया।
समाज: वर्ण व्यवस्था जन्म आधारित और कठोर हो गई, जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र शामिल थे। महिलाओं की स्थिति में गिरावट आई।
अर्थव्यवस्था: लोहे के उपयोग ने कृषि में क्रांति ला दी। अब अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि हो गया।
धर्म: यज्ञ और कर्मकांड बहुत जटिल और खर्चीले हो गए। इंद्र और अग्नि का महत्व कम हो गया और प्रजापति (सृष्टिकर्ता), विष्णु (पालक) और रुद्र (संहारक) प्रमुख देवता बन गए। इसी काल के अंत में, कर्मकांडों के विरुद्ध एक बौद्धिक प्रतिक्रिया के रूप में उपनिषदों की रचना हुई, जिनमें आत्मा, ब्रह्म और कर्म के दार्शनिक सिद्धांतों पर जोर दिया गया।
महाजनपद और धार्मिक आंदोलन (600 - 322 ई.पू.) ⚖️
यह द्वितीय शहरीकरण, राज्यों के उदय और नए धार्मिक विचारों का काल था।
महाजनपद: पूरे भारत में सोलह बड़े राज्यों का उदय हुआ, जिन्हें 'महाजनपद' कहा गया। इनमें मगध, कोशल, वत्स और अवंति सबसे शक्तिशाली थे। अंततः, मगध सबसे शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में उभरा।
मगध के उदय के कारण: उपजाऊ भूमि, लोहे के समृद्ध भंडार, गंगा नदी के माध्यम से व्यापारिक मार्ग और बिम्बिसार तथा अजातशत्रु जैसे महत्वाकांक्षी शासक।
धार्मिक आंदोलन (बौद्ध और जैन धर्म):
पृष्ठभूमि: उत्तर वैदिक काल की बढ़ती सामाजिक जटिलताओं, वर्ण व्यवस्था की कठोरता और खर्चीले यज्ञों के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया हुई।
जैन धर्म: वर्धमान महावीर (24वें तीर्थंकर) द्वारा प्रचारित। इसके मूल सिद्धांत अहिंसा (विशेष रूप से), अस्तेय (चोरी न करना), सत्य, अपरिग्रह (संग्रह न करना) और ब्रह्मचर्य हैं।
बौद्ध धर्म: गौतम बुद्ध द्वारा स्थापित। उन्होंने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग का उपदेश दिया। उन्होंने मध्यम मार्ग अपनाने और कर्मकांडों तथा जाति-प्रथा का विरोध करने पर जोर दिया।
मौर्य साम्राज्य (322 - 185 ई.पू.) 🏛️
यह भारत का पहला विशाल, केंद्रीकृत और सुसंगठित साम्राज्य था।
प्रमुख शासक:
चंद्रगुप्त मौर्य: साम्राज्य के संस्थापक, जिन्होंने कौटिल्य (चाणक्य) की मदद से नंद वंश को हराया।
अशोक: मौर्य वंश के सबसे महान शासक।
प्रशासन:
कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' में एक कुशल और केंद्रीकृत नौकरशाही का विस्तृत वर्णन है।
साम्राज्य प्रांतों में विभाजित था और एक विशाल जासूसी प्रणाली थी।
अशोक का धम्म:
कलिंग युद्ध (261 ई.पू.) के नरसंहार से व्यथित होकर, अशोक ने युद्ध की नीति त्याग दी और 'धम्म' (नैतिकता और सामाजिक आचरण का एक कोड) की नीति अपनाई।
उन्होंने अपने संदेशों को स्तंभों और चट्टानों पर खुदवाया, जिन्हें अशोक के शिलालेख कहा जाता है। ये शिलालेख ब्राह्मी, खरोष्ठी, अरामी और ग्रीक लिपियों में हैं।
उन्होंने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया और इसे श्रीलंका तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में फैलाने के लिए मिशनरियों को भेजा।
कला: पत्थर की वास्तुकला और मूर्तिकला का अभूतपूर्व विकास हुआ। अशोक के एकाश्मक स्तंभ और उन पर बने पशु शीर्ष (जैसे सारनाथ का सिंह चतुर्मुख) इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
मौर्योत्तर काल (लगभग 200 ई.पू. - 300 ई.) 🌏
मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद, भारत में राजनीतिक विखंडन हुआ, लेकिन यह व्यापार, कला और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक जीवंत युग था।
देशी राजवंश: उत्तर में शुंग और कण्व, तथा दक्कन में सातवाहन प्रमुख थे।
विदेशी आक्रमणकारी: उत्तर-पश्चिम से मध्य एशियाई शक्तियों ने आक्रमण किया:
इंडो-ग्रीक (हिन्द-यवन): ये भारत में सोने के सिक्के जारी करने वाले पहले शासक थे।
शक: इनका सबसे प्रसिद्ध शासक रुद्रदामन था।
कुषाण: इन्होंने मध्य एशिया से लेकर उत्तर भारत तक एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया।
कनिष्क: सबसे महान कुषाण शासक थे। उन्होंने शक संवत् (78 ई.) शुरू किया और चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन किया। उनके शासनकाल में मध्य एशिया से गुजरने वाले रेशम मार्ग (Silk Road) पर कुषाणों का नियंत्रण था, जिससे वे बहुत समृद्ध हुए।
कला:
गांधार शैली: उत्तर-पश्चिम में विकसित, इस पर यूनानी-रोमन प्रभाव स्पष्ट है। इसमें बुद्ध की मूर्तियाँ यथार्थवादी शैली में बनाई गईं।
मथुरा शैली: यह स्वदेशी कला शैली थी, जिसमें लाल बलुआ पत्थर का उपयोग होता था। इसमें बौद्ध, जैन और हिंदू तीनों धर्मों से संबंधित मूर्तियाँ बनीं।
गुप्त साम्राज्य (लगभग 320 - 550 ई.) ✨
गुप्त काल को अक्सर भारत का 'स्वर्ण युग' कहा जाता है क्योंकि इस दौरान कला, साहित्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अभूतपूर्व प्रगति हुई।
प्रमुख शासक: चंद्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त ('भारत का नेपोलियन') और चंद्रगुप्त द्वितीय 'विक्रमादित्य'।
प्रशासन: मौर्यों की तरह अत्यधिक केंद्रीकृत नहीं था। सामंती व्यवस्था (सामंतवाद) के तत्व उभरने लगे थे।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी:
गणित: आर्यभट्ट और वराहमिहिर जैसे महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री हुए। शून्य (0) की अवधारणा और दशमलव प्रणाली का विकास इसी काल की देन है।
धातुकर्म: दिल्ली में स्थित महरौली का लौह स्तंभ गुप्त काल की उन्नत धातु प्रौद्योगिकी का एक अद्भुत उदाहरण है, जिसमें आज तक जंग नहीं लगा है।
साहित्य: 📜
यह संस्कृत साहित्य का क्लासिकल युग था। कालिदास ने 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' और 'मेघदूतम्' जैसी अमर रचनाएँ कीं। पुराणों और स्मृतियों को उनका अंतिम रूप दिया गया।
कला और वास्तुकला:
मंदिर निर्माण की शुरुआत हुई। देवगढ़ (झांसी) का दशावतार मंदिर और भितरगाँव (कानपुर) का ईंटों का मंदिर प्रारंभिक नागर शैली के सुंदर उदाहरण हैं।
अजंता की गुफाओं में बने चित्र विश्व प्रसिद्ध हैं।
सारनाथ में बनी बुद्ध की मूर्तियाँ भारतीय मूर्तिकला के शिखर का प्रतिनिधित्व करती हैं।
समाज: ब्राह्मणवाद का पुनरुत्थान हुआ और वर्ण व्यवस्था अधिक कठोर हो गई। भूमि अनुदान की प्रथा (अग्रहार) प्रचलित हुई।